दो शे’र
कमबख़्त बेरुख़ी….. देखो यार कर रहा है ।
हिज्र भी…. ज़ेहनोदिल पर वार कर रहा है ।।
दिन , लम्हें , साल गुज़ार दिए याद में उनकी ।
इंतज़ार आज भी उनका इंतज़ार कर रहा है ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम
कमबख़्त बेरुख़ी….. देखो यार कर रहा है ।
हिज्र भी…. ज़ेहनोदिल पर वार कर रहा है ।।
दिन , लम्हें , साल गुज़ार दिए याद में उनकी ।
इंतज़ार आज भी उनका इंतज़ार कर रहा है ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम