दो शे’र
देखकर यूं हर बार मुझे अनदेखा करना ।
इस अदा में कितनी मासूमियत है उनकी ।।
लबों पर ला सकते थे इक दफ़ा नाम मेरा ।
ख़ामुश लब हैं ,जाने क्या नीयत है उनकी ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम
देखकर यूं हर बार मुझे अनदेखा करना ।
इस अदा में कितनी मासूमियत है उनकी ।।
लबों पर ला सकते थे इक दफ़ा नाम मेरा ।
ख़ामुश लब हैं ,जाने क्या नीयत है उनकी ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम