दो शे’र ( मतला और इक शे’र )
इक इक पल तिरे बिन……. काटना मुश्किल है ।
किसी और से तिरी यादों को बाँटना मुश्किल है ।।
यूँ तो जला दी हैं……… सब तस्वीरें बारी -बारी ।
ज़ेहन से उनके अक़्स को निकालना मुश्किल है ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम
इक इक पल तिरे बिन……. काटना मुश्किल है ।
किसी और से तिरी यादों को बाँटना मुश्किल है ।।
यूँ तो जला दी हैं……… सब तस्वीरें बारी -बारी ।
ज़ेहन से उनके अक़्स को निकालना मुश्किल है ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम