दो वक्त की रोटी
दो वक्त की रोटी
दो वक्त की रोटी के लिए इंसान रात दिन ताबड़तोड़ मेहनत करता है।और अमीर बनने की लालसा में रिश्ते नाते सभी भूल जाते है दो घड़ी अपनो के साथ बात करने का भी वक्त नही निकाल पाता।यहाँ तक कि क्या अच्छा क्या बुरा का भी भान भूल जाता है
एक बार बहुत समय पहले मेने अपने ही आँखों से जो दृश्य देखा था उसी को अपने शब्दों में कहना चाहती हूँ
एक बार मैं अपने किसी दोस्त के घर रास्ते से जा रही थी।तभी रास्ते मे एक औरत अपने छोटे से बच्चे को लेकर बैठी थी किसी के घर के दरवाजे पर और रो रो कर कह रही थी
ओ बहन थोड़ा सा दूध दे बहन मेरा बेटा दो दिन से भूखा हैं कुछ नही खाता सिर्फ दूध पीता है थोड़ा दूध दे दो बहन दे दो
तभी उस घर से एक औरत बहार निकल कर उस औरत को गंदी गंदी गालियां निकाल कर उसके दरवाजे से बहार जाने को बोल रही थी। बच्चे की माँ मुझे एक पाँव से अपाहिज दिखाई दे रही थी और शायद उसने भी दो दिन से कुछ नही खाया होगा।तभी मुझे बहुत कमजोर लग रही थी। तन पर फ़टी साड़ी पहने हुए वो औरत उस मकान से अपने आँसू पोछते हुए मेरी और बढ़ी।
मैंने सोचा इंसान कितना मजबूर हैं।ऊपर से अपाहिज और गोदी में छोटा सा बच्चा लाचार ग़रीब औरत कितनी दुःखी।
भगवान ऊपर वाला जिसे अन्न की जरूरत है उसे नसीब नही होने देता और जिनके भरे
भंडार अन्न
के वो किसी गरीब बच्चें को थोड़ा सा दूध भी देने की इच्छा नही रखता।ये कैसा भगवान तेरा ग़रीबो के साथ व्यवहार है।क्यो तू अक्सर गरीबों की ही परीक्षा लेता है।
मेरे मन मे ऐसे ही अनगिनत प्रश्न प्रभु से चल रहे थे कि वो औरत लपकते हुए मेरी और कुछ आशा के साथ बढ़ी चली आ रही थी।
तभी मेरे मनमे उस औरत और बच्चें के प्रति दया जाग्रत हो गयी और मैने मेरे पर्स से सौ रुपये निकाले और बोला बहन ये लो सौ रुपये और अपने बच्चें के लिए बाजार से थोड़ा दूध लेकर पिला देना और खुद भी कुछ खा लेना।ऐसा बोल मैं अपने दोस्त के घर की और बढ़ चली।आज मेरे मन को बहुत खुशी मिल रही थी कि मैने किसी गरीब और लाचार औरत और उसके बच्चें के लिए मुझसे जो बन पड़ा वो किया।मेरी खुशी का सच मे आज कोई ठिकाना नही रहा अपार शांति का अनुभव हो रहा था मुझे आज
गायत्री सोनू जैन मन्दसौर