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19 Jan 2018 · 1 min read

दो मुक्तक

दो मुक्तक
(1)
प्रलोभन के दाने लिये घूमते वो,
फँसें लोग जाले में,तो झूमते वो!
जिन्हें आत्मसम्मान है सबसे प्यारा,
चरण दिलज़लों के नहीं चूमते वो!
(2)
मेरे मीत दुश्मन से जो मिल गये हैं,
तो मुख दुश्मनों के सहज खिल गये हैं!
मैं जिनके लिये सच में आवाज़ था प्रिय,
उनके ही लब आज क्यों सिल गये हैं।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)

Language: Hindi
2 Likes · 315 Views
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