दो मुक्तक
भरा भावनाओं के जल से मन वो गहरा कूप है
कहीं दर्द की छांव घनी तो, कहीं खुशी की धूप है
कितनी भी हम कोशिश कर लें, सत्य यही है ‘अर्चना’
चलना पड़ता हमें हमेशा जीवन के अनुरूप है
निभाना ज़िन्दगी से भी कहाँ आसान होता है
जुटाता सिर्फ जो माया बड़ा नादान होता है
कमाले कितनी भी दौलत नहीं कुछ साथ जाएगा
किये कर्मों का अपने तो यहीं भुगतान होता है
डॉ अर्चना गुप्ता
20.04.2024