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13 Dec 2024 · 1 min read

दो बूंदों में डूब के रह गयी ….

दो बूंदों में डूब के रह गयी ….

थक जाते हैं चलते कदम पर

राह कभी भी थकती नहीं

अभिलाषाओं की गठरी बांधे

हृदय की गागर भरती नहीं

आरम्भ की होती सबको चाहत

अंत किसी को भाता नहीं

बिन भानु तो कभी जीवन में

आशा का प्रभात आता नहीं

मिथ्या में भी आशा ढूंढें

जीव के स्वप्न निराले हैं

क्यों जीता है भ्रम में जाने

हाथों में यथार्थ के निवाले हैं

आता है वो वक्त के जब

चश्मे से भी नज़र नहीं आता

जीवन भर की अपेक्षाओं का

कोई मोल समझ नहीं पाता

दो बूंदों में डूब के रह गयी

हर अपेक्षा जीवन की

अंजलि को सौगात मिली बस

दर्दीली उपेक्षा जीवन की

सुशील सरना

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