दो दोहे … इश्क, प्रीत
दो दोहे … इश्क, प्रीत
इश्क गहरा सा दलदल, चले फसावट चाल l
दंगल कैसे हो सके, रखता मोटी खाल ll
न जरूरत सीखन समझ, एसी होती प्रीत l
हार का नाम ना पता, यही है प्रीत रीत ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
दो दोहे … इश्क, प्रीत
इश्क गहरा सा दलदल, चले फसावट चाल l
दंगल कैसे हो सके, रखता मोटी खाल ll
न जरूरत सीखन समझ, एसी होती प्रीत l
हार का नाम ना पता, यही है प्रीत रीत ll
अरविन्द व्यास “प्यास”