*दो घूँट (कहानी)*
दो घूँट (कहानी)
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“पापा ! क्या मैं भी थोड़ी-सी शराब पी लूं ?”- विधान ने जब यह पूछा तो उसके पिता दीपक आश्चर्य से भर उठे । शर्म और क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया ।
यह एक विवाह समारोह था ।पार्टी चल रही थी । शराब का एक स्टाल सजा हुआ था । कुछ लोग वहीं पर खड़े होकर शराब पी रहे थे जबकि अन्य ज्यादातर लोग या तो झुंड बनाकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खड़े थे और शराब की चुस्कियां ले रहे थे या फिर उन्होंने मेजों पर गोल घेरा बनाकर कुर्सियां डाल रखी थीं और पार्टी का आनंद शराब के रसास्वादन के साथ उठा रहे थे। दीपक को इस प्रकार के माहौल में पार्टियां अटेंड करने की आदत पड़ चुकी थी। उन्होंने जीवन में कभी शराब को हाथ नहीं लगाया लेकिन अपने मित्रों और संबंधियों को शराब पीते देखने के लिए वह विवश थे। किंतु यह विवशता उन्हें अपने पुत्र को शराब पीते हुए देखने के लिए भी अभिशप्त कर दे, ऐसा वह हरगिज नहीं चाहते थे ।
कुछ डांटने और कुछ समझाने के लहजे में उन्होंने विधान से कहा “शराब पीना बुरी बात है । शराब नहीं पीनी चाहिए ।”
“अगर शराब पीना बुरी बात है तो मेरे सामने सोसाइटी के सारे अच्छे लोग शराब क्यों पी रहे हैं ? क्या यह बुरे लोग हैं ? हमें उनसे संबंध नहीं रखना चाहिए ? “-विधान ने बहस करते हुए जवाब दिया ।
“फिर भी शराब व्यक्ति का पतन कर देती है और उसे कहीं का नहीं छोड़ती । तुम शराब को हाथ नहीं लगाओगे ।” -आदेशात्मक स्वर में दीपक ने अपने पुत्र से कहा।
” मेरे सामने मेजों पर जो लोग बैठे हुए हैं ,वह शहर के प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति हैं। कोई शीर्ष उद्योगपति है ,कोई बड़े शोरूम का मालिक व्यापारी है । कोई बड़ा अधिकारी है । यह सब सफल लोग ही तो हैं।”
” शराब पीने से आदमी का दिमाग काम नहीं करता । वह विचारों से बौना हो जाता है।”
” यह बात मैं आपकी नहीं मान सकता। मेरे सामने डॉक्टर ,वकील और बड़े-बड़े विचारक और शायर बैठकर शराब पी रहे हैं। क्या यह सब दिमाग से पैदल हो गए हैं ?”
“तुम बदतमीजी कर रहे हो विधान ! यह सब मुफ्त की पी रहे हैं और बेशर्म लोग हैं।”
” मैं भी तो मुफ्त की ही पीउँगा। आपसे पैसे थोड़े ही मांग रहा हूं ? ”
दीपक किसी भी हालत में कक्षा बारह में पढ़ने वाले अपने पुत्र को शराब की लत में उलझा हुआ देखना नहीं चाहते थे। उनका धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने चीख कर कहा “विधान ! होश में आओ ! बात करने की तमीज सीखो !”
आवाज इतनी ऊंची थी कि पार्टी में एक हलचल-सी मच गई । जितने लोग खड़े थे या मेजों के चारों तरफ कुर्सियों पर बैठे थे सब दीपक और विधान को टकटकी लगाए देखने लगे । आखिर पार्टी में मौजूद कुछ लोग दीपक के पास आए और कहने लगे” भाई साहब ! ऐसी क्या बात हो गई जो आप बेटे पर इतना बिगड़ रहे हैं ?”
दीपक तो क्या कहते लेकिन विधान ने मुंहफट होकर कह दिया “मैं दो घूँट शराब ही तो पीना चाहता था ! मेरे सारे दोस्त पी रहे हैं।”
“अरे भाई साहब जरा-सी बात पर आप इतना बिगड़ रहे हैं । यह तो सोसाइटी का चलन है । फैशन है । अगर समाज में जीना है ,चार लोगों के साथ उठना-बैठना करना है तो शराब तो पीनी ही पड़ती है । आपकी तो जिंदगी कट गई लेकिन इस बच्चे को तो कुएं का मेंढक मत बनाइए ?”
दीपक से और कुछ तो नहीं हुआ, वह परिस्थितियों की विवशता को देखकर फूट-फूट कर रोने लगे । उन्हें रोता देख कर विधान उनके पास आया और कहने लगा-” पापा ! आप मत रोइए ! मैं शराब नहीं पियूंगा ।”
दीपक बाबू बुदबुदाकर कहने लगे “बेटा ! मैंने तो तुम्हें समझा दिया और तुम समझ गए लेकिन अगर पार्टियों में खुलेआम शराब स्टेटस सिंबल बनने लगी तो कितने लोग अपने बच्चों को समझा पाएंगे?”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451