दो ग़ज़ जमीं अपने वास्ते तलाश रहा हूँ
बेबसी और बेकसी के बीच रास्ते तलाश रहा हूँ,
महँगे बाज़ार में सामान, सस्ते तलाश रहा हूँ।
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कौन आए, दोपहर की धूप में मिलने मुझसे ,
तंग दौर में टिकने वाले, रिश्ते तलाश रहा हूँ।
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मुश्किलों का समंदर सिर पे ठहरा है इन दिनों,
हिफ़ाज़त के ठौर ठिकाने पुश्ते तलाश रहा हूँ।
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मेरी बदहाली में ख़ूब मिले जो बारहा मुझसे,
अच्छे दिनों कहाँ गये, वो फ़रिश्ते तलाश रहा हूँ।
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बहुत कर ली रहमदिली ख़ाकछानी भी हमने,
अब दो ग़ज़ जमीं अपने वास्ते तलाश रहा हूँ।