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7 Feb 2024 · 1 min read

दो किनारे

हम-तुम
बिछड़े थे जहाँ,
नदी की धारा
ठीक आधी-आधी
बंट गई थी वहीं से

एक दूसरे से
ठीक विपरीत
अपने-अपने जल से
दोनों किनारों को सींचती
दोनों धाराएँ
दूर तक बहती रहीं
बीच में
एक डेल्टा बनाती

बिछुड़ी हुई दोनों धाराएँ
मिल रही हैं
एक पल के लिए
अब
यह बात अलग है
कि
एक धारा के दोनों किनारे
काँटेदार बेरियों की झाड़ियाँ
उगी हैं
और दूसरी धारा के किनारे
चम्पा-चमेली गुलाब और
रजनीगंधा महकती है,

फिर भी दोनों धराएँ
एक दूसरे के
निकट आने के लिए
बह रही हैं
निरंतर
अनवरत,
गतिशील
और प्रवाहमान रहते हुए

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