दो कंधे मजबूत
करूँ साधना राम की,
माँगूँ इतनी बूत।
बोझ सह सकें सौ गुना,
दो कंधे मजबूत।
दो कंधे मजबूत,
बोझ औरों के बाँटें।
बनें देव के दूत,
दुखों के गड्ढे पाटें।
नारायण सुरभूप,
स्वयं से हृदय बाँधना।
साधन करूँ स्वरूप,
आपकी करूँ साधना।
संजय नारायण