दोेहे
अपनी-अपनी साधना,अपना-अपना धाम।
सारे तीरथ हैं यहां, घर है जिसका नाम।।
2
सीता सम हों बेटियां, बेटा राजा राम।
गुणकारी हो साधना, तब है मंगल धाम।।
3
एकाकी जीवन हुआ, घर में अब वनवास
कलयुग में भी देखिए, त्रेता सम उपवास।।
4
साँसों से होती रही, तन की जब तकरार।
तभी सामने आ गया, जिन हाथों पतवार।।
5
तन से बड़ी न नौकरी, मन से बड़ा न बॉस
कहे सूर्य संसार से, कभी न छोड़ो आस।।
6
सबके राजा राम हैं, दशरथ सम हैं तात।
फिर क्यों बैठी मंथरा, देने को आघात।।
सूर्यकांत