दोहे
/ दोहे/
जीवन के दिन चार हैं, लगा दियो उपकार।
सबसे बढ़ कर धर्म है, परमारथ लो जान।।
सुख की घड़ियाँ हैं अभी, काहे होत अधीर।
चक्र समय का चल रहा, आयेंगी धर धीर।।
दिन दिन बीत रही, क्षण क्षण रीत रही।
मृत्यु ! ! जीवन से, पल पल जीत रही।।
कोई जीवन ना रहा, यम से बचा अछूत।
एक दिवस तो आएगा, जग जाएगा छूट।।
मन के साधे तन चले, तन साधे रथ चाल।
जैसा जिसका सारथी, वैसे चाल कुचाल।।
बून्द बून्द से घट भरे, कण कण भरे भंडार।
दो अक्षर नित जाप से, भरता पुण्यागार।।
सिद्ध सन्त सन्ताप हरैं, बनतू हरैं सम्पत्ति ।
काली कमली ओढ़ कहुँ, कागा कोकिल वृत्ति।।
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