दोहे-
जाति जाति के अंग से, एक कहाये देह ।
काम करे सब साथ में, देह जगाये नेह ।
हाथ पैर का शत्रु हो, पीठ पेट में बैर ।
काया कैसे देश की, माने अपनी खैर ।।
पंड़ित वह काश्मीर का, पूछ रहा है प्रश्न ।
टूटे मेरे घोसले, उनके घर क्यों जश्न ।।
हिन्दू हिन्दी देश में, लगते हैं असहाय ।
दूर देश की धूल को, जब जन माथ लगाय ।।
‘कैराना‘ इस देश का, बता रहा पहचान ।
हिन्दू का इस हिन्द में, कितना है सम्मान ।।
दफ्तर दफ्तर देख लो, या शिक्षण संस्थान ।
हिन्दी कहते हैं किसे, कितनों को पहचान ।।
-रमेश चौहान