दोहे
1-
प्रेम जगत में उच्च है, निम्न घृणा का रूप।
प्रेम वृक्ष विश्राम दे, जब हो दुःख की धूप।।
प्रेम दिवस को आइए, कर दे यूँ साकार।
गैर न कोई है यहाँ , करें सभी से प्यार ।।
विरह वेदना हिय बसी, देता दर्द बसंत ।
पिक स्वर लगते विष घुले, तुम बिन मेरे कंत।।
सज गयी है वसुंधरा, सूना मोर सिंगार।
पिव पिव की बोली सजन, करै जिया पर वार।।
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
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