दोहे
दोहे
भावों की बिंदिया लगा,कर भाषिक सिंगार।
आई कविता कामिनी,सज धज मन के द्वार।।1
शब्दों के लालित्य की,अधर लालिमा साज।
कविता बन नवयौवना,करती उर पर राज।।2
जब हो कविता पाठ से,ध्वनि माधुर्य निनाद।
लगता पायल कर रही,सरस प्रीति संवाद।।3
आभासित व्यंग्योक्ति हो,जैसे वंकिम दृष्टि।
बेधे पाठक हृदय यों ,करें काव्य की सृष्टि।।4
अनायास हो मुग्ध मन,देख काव्य रसधार।
बल खाती ज्यों नायिका,चले बीच बाज़ार।।5
परिनिष्ठित भाषा अगर,और परिष्कृत भाव।
होता प्रादुर्भूत तब ,कविता के प्रति चाव।।6
शब्द करे जब अर्थ की,हाथ जोड़ मनुहार।
कवि का रचना कर्म तब,हो जाता बेकार।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय