दोहे
सत्य शील सदभाव से, मानव का कल्यान।
संस्कार शुभ कर्म से, मानव बने महान।।1।।
जनम भूमि जननी सदा, बड़ी सभी से होय।
पिता गगन से भी बड़े, जाने मुनि वह सोय।।2।।
प्राणिक कायिक मानसिक, बौद्धिक गुण प्रतिमान।
अन्न मनोमय प्राणमय , कोष ज्ञान उत्थान ।।3।।
चारित्रिक भावत्मक नैतिक, गुण गर होय।
समता अरु सहकारिता,मोती हार पिरोय ।।4।।
स्वस्थ बीज से ही उगे, स्वस्थ कन्द फल फूल।
सत्य शील सद् भावना, निज संस्कृति का मूल।।5।।
भय निद्रा भोजन शयन, मानव पशु में होय।
जिसमें नही विवेक है, पशु कहलाये सोय।।6।।