दोहे
हास्य-व्यंग्य दोहे
हास्य व्यंग्य दोहे रचे, कर लेना स्वीकार।
हँसे बिना जो पढ़ लिए, लिखना है बेकार।।
ऐसी वाणी बोलिए, अपनापन जग खोय।
गंजे सिर बेलन पड़ें, बाल न बांका होय।।
रहिमन धागा प्रेम का, माटी में मिल जाय।
बेलन लौकी पड़ रहे, कविता खड़ी लजाय।।
मोबाइल का दौर है, सबके हाथ सुहाय।
जब कम होवे बैटरी, बेचैनी बढ़ जाय।।
कहलाते कविराज ये, पक्के कविता चोर।
दूजी कविता लिख रहे, चर्चा में बहु ज़ोर।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर