दोहे
वंश वाद की फल रही राजनीति में बेल।
दल बदले सत्ता मिले वही पुराना खेल।
पिता पुत्र चाचा सगे महासमर में आज।
कुरुक्षेत्र सूबा बना किंचित बची न लाज।
ओछी बाते कर रहे राजनीति के लोग।
गाली की भाषा बकें जाने कैसा रोग।।
बदले की बाते करे मुद्दा कोई न पास।
सत्तर साल विता दिए हो ना सका विकास।
आशुकवि नीरज अवस्थी अमर उजाला बरेली में 19 जनवरी पेज नम्बर 4 पर प्रकाशित