दोहे
दोहे
जाना हो यदि जेल तो,करना भ्रष्टाचार।
भले मार ऊपर पड़े,रोना बारंबार।।
जीवन भर रोते रहो,यही भाग्य का खेल।
सिर धुन धुन पीटो सदा,बुद्धि हमेशा फेल।।
आर्थिक आकांक्षा प्रबल,से ही भ्रष्टाचार।
फँस कर मरता मनुज है,जीवन हो बेकार।।
जीवन जितना सरल हो,उतना ही सुख -चैन।
धन के पीछे भाग कर,रोना मत दिन -रैन।।
जिसे सनातन धर्म का,हो जाता है ज्ञान।
महा पुरुष उत्तम वही,होत सत्य का भान।।
सत्ता लोलुपता बुरी,करती जीवन नष्ट।
साधारण जीवन सुगम,बात सत्य शिव स्पष्ट।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।