ग़ज़ल(ये शाम धूप के ढलने के बाद आई है)
ग़ज़ल
वफ़ा के रंग पिघलने के बाद आई है ।
ये शाम धूप के ढलने के बाद आई है।
नया निख़ार सा रुख पे दिखाई देता है
ये’ ख्वाबे’ व़स्ल मचलने के’ बाद आई है।
लिहाज करती’ लगी हिज्र की अना का ये
क़जा का’ व़क्त बदलने के’ बाद आई है
पनाह में उस के है सुकूं मिला ऐसा
बहार ज्यों गुल के खिल ने के बाद आई है
लगे है’ चाँद महब्बत के’ अस्र में इसके
लबों पे ‘उसके’ हँसी, मिलने के बाद आई है
डॉक्टर रागिनी शर्मा
इंदौर