दोहे
दोहे
लोभी ढोंगी लालची,झूठे चोर लबार।
बन बैठे जनतंत्र के ,सारे पहरेदार।।1
सूरज कहता मैं हरूँ,धरती का अँधियार।
मुझको नहीं पसंद है,जुगनू का किरदार।। 2
गाँवों में खंभे गड़े ,खिंचे हुए हैं तार।
बिल आते बिजली नहीं,किससे करें गुहार।।3
चेहरे पर मासूमियत, दिल में है तूफ़ान।
अपना हक़ है माँगता,हर मज़दूर किसान।।4
मिलती है सम्मान निधि,नहीं फ़सल के दाम।
बँटता राशन मुफ्त में, हाथ हुए बेकाम।।5
डाॅ बिपिन पाण्डेय