दोहे
दोहे
जब भी मिलकर है चला, सनातन से विज्ञान।
हुई सत्य की खोज है, सकल विश्व को ज्ञान।।
नालंदा जब से जली, छूट गयी सब आस।
उसी ज्ञान से नौ ग्रह, लगते कितने पास।।
मुगल जलाते ही रहे, ज्ञान भरे वह पेज।
बचे चुराकर ले गए, गौरे डच, अंग्रेज।।
विश्व अशिक्षित था कभी, भारत शिक्षा केन्द्र।
सकल विश्व के आ चुके, यहाँ पढ़ने नृपेंद्र।।
तन पर नही थे कपड़े, नही घरों पर टैंट।
चुरा फिरंगी ज्ञान को , करा रहे पेटेंट।।
©दुष्यन्त ‘बाबा’