दोहे
दोहे….
त्राहिमाम क्रंदन करे,मानव दुखी अपार।
एक आस तुझ पर टिकी, कर दे बेड़ा पार।।
सृष्टि जगत नियन्ता की, हर इक कण है खास।
मूढ़ मनुज न धैर्य रखा, खड़ी प्रकृति उदास।।
वही धरा वही रवि है, क्यों विषयुक्त बयार।
जग प्रतिपाल दया करो, विकल हुआ संसार।।
हम निर्बुद्धि हैं प्रभु जी तुम हो पालनहार।
हम मानव अधम पापी तुम करुणा आगार।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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