दोहे
दोहे
घृणा – द्वेष मन में जहाँ ,बैठे पैर पसार।
वहाँ अमन की पीठ में,नश्तर दिया उतार।।1
पीकर बैठे लोग सब,नफरत वाली भांग।
खूँटी पर सद्भाव को ,दिया सभी ने टांग।।2
सिसक रही इंसानियत ,घृणा हुई मुँहजोर।
हिंसा ताण्डव कर रही ,देखो चारों ओर।।3
हिंसा ने ऐसा लिखा,जख्मों का इतिहास।
सभी गैर से लग रहे,बचा न कोई खास।।4
जाति धर्म के नाम पर,ऐसा हुआ प्रयोग।
गम की चादर ओढ़कर,बैठे हैं सब लोग।।5
डाॅ बिपिन पाण्डेय