दोहे
है व्यवस्था इंसानी निसर्ग को गये भूल
बोये पेड़ बबूल के पैदा होंगे लेकर शूल
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संविदा इजाजत देता नहीं वोट में हो खोट,
एक गुप्त मतदान कारणे,करे गहरी चोट,
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लौटा दो
वो बुरे दिन
पास रखें अपने
ये अच्छे दिन.
तलाशी गई है जेबें
खुलवाये बचत-खाते
मालूम हुआ,
वे भी है खाते
हाथ है खाली
कैसे मने दिवाली
मूख दर्शक बने सवाली
लेते सबसे देखों दलाली