दोहे
अपने मन की बात
सोच-समझ कर ही कहें, अपने मन की बात।
सुन करते उपहास जन, देते मन आघात।।
अगर न कहती मैं कभी, अपने मन की बात।
पड़े नहीं होते कभी, मुश्किल में हालात।।
मातु, पिता, गुरु से कहें, अपने मन की बात।
मार्ग प्रदर्शन ये करें, छिपे रहें जज़बात।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ प्र.)