दोहे
चाँद
चंचल चितवन चाँद सी, भूले योगी योग।
राग-द्वेष में फँस गए, करते हैं नित भोग।।
अख़बार
चर्चित लोगों में हुआ, आज सकल परिवार।
अपवादों में घिर गया, बंद रखा अख़बार।।
सुरमा
सुरमा सम लोचन बसे, पिया बने शृंगार।
बंद पलक की ओट में, करें प्रणय अभिसार।।
तिल
काला तिल घायल करे, रक्तिम हुए कपोल।
आकर्षण का केन्द्र बन, बदल दिया भूगोल।।
प्यार
भाई-भाई लड़ रहे, शेष नहीं अब प्यार।
कपट भाव मन में बसा, शब्द बने तलवार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)