दोहे
दीप-
दीप तले अँधियार है, करता जग उजियार।
परहित की रख भावना, मना आज त्योहार।।
लक्ष्मी-
माँ लक्ष्मी वरदायिनी, विनय करो स्वीकार।
सुख-वैभव जग पूर्ण हो, भरे रहें भंडार।।
मिठाई-
आज मिठाई खा रहे, निर्धन अरु धनवान।
समता भाव बना रहे, माता दो वरदान।।
प्रकाश-
है प्रकाश का पर्व ये, हरे तमस अज्ञान।
ज्योतिर्मय अंतस करे, कहते संत सुजान।।
उत्सव-
मना रहे उत्सव सभी, गेह बना पकवान।
भयाग्रस्त नर -नारियाँ, माँ करना कल्याण।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)