दोहे
अपनों के दुख दर्द में, गिरता है जो नीर।
जादू सम करता असर, हर लेता हर पीर।।
मँहगी हैं अब रोटियाँ, मँहगाई का दौर।
रोजगार दुर्लभ हुआ, मँहगा है हर कौर।।
बाबा साहब रो रहे, स्वर्ग लोक में आज।
भ्रमित हुआ है आजकल, जबसे दलित समाज।।
बाबा जी के नाम पर, खोलो खूब दुकान।
राजनीति खातिर मिला,नया नया सामान।।
आंसू जब आने लगे, बहने दो निर्बाध।
स्वच्छ हृदय में साथियों, बढ़ता प्रेम अगाध।।
बाबा के चेला बनें, बाबा जी के बाप।
बाबा जी होते यहाँ, करते पश्चाताप।।
पाप पुण्य के फेर में, रहना है बेकार।
जीवन में सद्कर्म से, मिले कभी ना हार।।
जिनके खातिर साथियों, पैसा है बस खास।
ख्वाबों में भी मत कभी, रखना उनसे आस।।
कुछ तो है मजबूरियां, कुछ आदत की बात।
लोटा पार्टी हो रही, सुबह-शाम दिन-रात।।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य