दोहे
गुरुवर के अहसान को, कभी न जाना भूल।
माथे तिलक लगाइए, गुरु चरणन के धूल।।
दोहा लिखा न जा रहा, करें छंद निर्माण।
मुखपोथी पर देखिए, मिलता खूब प्रमाण।।
जिनको समझ न आ रहा, दोहा छंद विधान।
निर्माता हैं छंद के, ऐसे लोग महान।।
समझ नहीं आता जिन्हें, छंदों के सुर-ताल।
छंद बनाते फिर रहे, भाई मनसुख लाल।।
सत्य कभी मत बोलिए, होती है तकरार।
उलझन मिलती व्यर्थ में,दुश्मन बनें हजार।।
वाह-वाह करते रहो, बने रहोगे मीत।
सत्य बात पर साथियों, टूटा मधुरिम प्रीत।।
चलना तो आता नहीं, बना रहे हैं राह।
कुछ चमचों को जोड़ कर, करा रहे हैं वाह।।
टेंशन ट्राली बैग की, लोको पायलट रिश्क।
सब लोको में टूल्स किट, साहब कर दो फिक्स।।
अधिकारी की मौज है, वर्कर सब परशान।
काम-धाम कुछ है नहीं, रोज नये फरमान।।
नदियां पर्वत झील सह, सागर रेगिस्तान।
सुंदर लगता स्वर्ग से, अपना हिन्दुस्तान।।
मस्तक ऊंचा हिन्द का, रखते वीर जवान।
नमन तुम्हे रणबांकुरों, तुम पर है अभिमान।।
ओढ़ तिरंगा शान से, हो जाते कुर्बान।
भारत की रक्षा करें, जय जय वीर जवान।।
नीच न छोड़े नीचता, लाख बदल दो खाल।
चुप रहना ही श्रेष्ठ है, मुर्ख जहाँ वाचाल।।
गदहा घोड़ा बन गया, बदल न पाया चाल।।
तेज दौड़ सकता नहीं, पहन अश्क का खाल।।
द्वेष जलन की भावना, रखते जो इंसान।
चैन नहीं मिलता कहीं, छिन जाती मुस्कान।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य