दोहे “सब विनाश का काम”
“सब विनाश का काम” दोहे
धूम्रपान की लत लगी, दिखा नहीं परिणाम।
बिन सोचे-समझे किए, सब विनाश के काम।
आब गई व्यभिचार में, धूमिल जग में नाम।
खुले आम दानव करे, सब विनाश के काम।।
खैनी, गुटका अरु नशा, सब विनाश के काम।
समय बिताया भोग में, किया नहीं सत्काम।।
काम, क्रोध, मद, लोभ हैं ,सब विनाश के काम।
ये सारे घातक व्यसन, करें नाम बदनाम।।
जीवन मायाजाल है, जप लो प्रभु का नाम।
चीर- हरण, छल, कपट हैं, सब विनाश के काम।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)