दोहे संग्रह
प्रदत दोहे पर पाँच रचना
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जीवन है आवागमन , यहीं परम है साँच।
जो इसको समझे नहीं ,पाये दुख की आँच।।
निर्वाचन होकर बने , जनहित में सरकार।
बहुमत से जो दूर हो , मिले उसी को हार।।
मन से जब परमार्थ का , होता है अनुबंध।
तब-तब जीवन में उड़े,सुखमय परम सुगंध।।
मुनियों के आख्यान में , भरा हुआ है ज्ञान।
इस पारस का पान कर,बनते मनुज महान।।
परिभाषित संसार में , जीवन है अनमोल।
पर मृगतृष्णा में मनुज,करता व्यर्थ किलोल।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)