दोहे संग्रह
प्रदत दोहे पर पाँच रचना
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जीवन है आवागमन ,क्या इसका विश्वास।
फिर भी मानव अंत तक,कब छोड़ा है आस।।
जनसेवा जिसमे नहीं , कैसा वह सरकार।
भोली जनता पर करे , नित ही अत्याचार।।
जग में प्रेम प्रतीक जो , बनकर उड़े सुगंघ।
उनसे ही सुखसार का , होता पुण्य प्रबंध।।
सार तत्व मन धार ली,सुनकर जो आख्यान।
उस मानव को ही मिले,जीवन में शुभ ज्ञान।।
मानवता के भाव से , परिभाषित संसार।
बैर किसी में हो नहीं , सब में पनपे प्यार।।
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