दोहे संग्रह
दोहा
त्रिगुण त्रिविध त्रिफला बहुत,उपयोगी हैं चूर्ण।
विविध विबुध बोले वचन,औषधि है यह पूर्ण।।
मंगलमय हनुमान जी,अतुलित है बलधाम।
हृदय बसा रखते सदा,रघुवर सीताराम।।
मंगलबाज जहाँ बजे,खुशियाँ हो चहुँ ओर।
मंगल जब मंगल करें, तब मधुरिम भोर।।
मंगलकारी है सदा, माँ का अतुलित प्यार।
माँ के बिन कुछ भी नहीं, माँ ही है संसार।।
मंगल ग्रह तक भी गए, हैं पृथ्वी के लोक।
मनुज बड़ा है लालची,चाहे हर सुख भोग।।
सोमवार के बाद है, आता मंगलवार।
हनुमंत की पूजा करूँ, मन भावों को मार।।
लाज लगे सजना मुझे,घूँघट यू न खोल।
नई नवेली नार हूँ, नहीँ फूटे मुख बोल।।
नारी मन के भाव में,जब जब आये लाज।
होती है लक्ष्मी वहीं,जानों यह सब राज।।
पिया मिलन की आस में,तरसत नैना आज।
सुध-बुध सब ही भूलकर,छोड़ चली सब लाज।।
किसी के लेखन को यहाँ,नहीं सहे कोई आज।
कलमकार के भाव में,बची कहाँ है लाज।।
डिजेन्द्र कुर्रे