दोहे- रोम रोम झंकृत हुआ
रोम रोम झंकृत हुआ,
लेकर माँ का नाम।
बिन मां क्या संसार में,
मां ही मेरा राम।।
कोटि कोटि वंदन करूं,
और झुकाऊं शीश।
मां मेरी पहचान है,
मां ही मेरा ईश।।
पग-पग पर थी साथ वो,
मैं जब हुआ हताश।
दिया हौसला है मुझे,
सदा जगाई आस।।
मां समान जग में नहीं,
मिले हितैषी मान।
व्याकुल वो मन में रहे,
देख दुखी संतान।।
रातें बीती जागकर,
जब जब था बीमार।
जब तक सोया मैं नहीं,
नींद न ली हर बार।।
क्या पसंद मुझको नहीं,
क्या है मुझे पसंद?
मुझसे ज्यादा जानती,
दिया स्वाद मकरंद।।
झल्लाहट में भी कभी,
रह ना पाई दूर।
लाड़ लड़ाया है सदा,
दिया प्यार भरपूर।।
क्या अच्छा क्या है बुरा,
देती मुझको ज्ञान।
नेक राह पर चल सदा,
बनूं गुणी इंसान।।
मेरे सुख में वो सुखी,
दुख में रहे उदास।
मेरे हित में ही सदा,
करती है अरदास।।
माँ की ममता से बड़ा,
कब दूजा आशीष।
साया मां का जब तलक,
झुके न जग में शीश।।
‘नवल’धन्य जीवन हुआ,
पाकर मां की सीख।
माँ मेरी खुशहाल हो,
मागूं प्रभु यह भीख।।
दोहाकार
नवल किशोर शर्मा ‘नवल’
बिलारी मुरादाबाद
सम्पर्क सूत्र-9758280028