दोहे रमेश के
हुई सयानी बेटियाँ,….. नही रहा ये ध्यान !
पिता खिलौनो की अभी, ढूँढ रहा दूकान !!
हो जाता है वाकई ,…..दोहे का तब खून !
पाठक समझे ही न जब , भीतर का मजमून !!
उल्टा सीधा काम कर,भरा लबालब कोष !
मिला नहीं फिर भी तुझे, जीवन में संतोष !!
नही पकडना स्वार्थ वश,जीवन मे वो राह !
चलने को जिस पर हमे,..करने पडें गुनाह ! !
जिन्हें कमाई पाप की,हुई नही स्वीकार!
करती रहे तबादले, बार बार सरकार !!
हो जाता है वाकई ,……….दोहे का तब खून !
पाठक समझे ही न जब , भीतर का मजमून !!
मिले गुरू माँ बाप से, ..सभी जरूरी ज्ञान!
तब जा कर चढते सभी,जीवन के सोपान!!
सही गलत का वक्त पर,हुआ जिसे अनुमान!
चढ जाता वो शीघ्र ही,…..जीवन के सोपान!!
हुए राह मे फर्ज की वही मित्र कुरबान!
जिनकी रग रग में बहे,रक्त संग ईमान !!
राष्ट्रगान का ही अगर,किया नही सम्मान!
देश प्रेम का आपका, मिथ्या है गुणगान! !
रमेश शर्मा