दोहे मेरे मन के
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टूट रही हैं ख्वाहिशें, बुझे हुए हालात।
वक्त बताता है यहाँ, किसकी क्या औकात।। १
जब भी की हमने यहाँ, सच्ची सीधी बात।
लोग हमे कहने लगे, ये औरत बदजात।। २
जीवन भर सहते रहे, अपनों का प्रतिघात।
कभी नहीं हमने किया, हक की तहकीकात।। ३
अश्क पोछते-पोछते, गुजरे हैं दिन-रात।
ख्वाबों में भी ना हुई, खुशी से मुलाकात।। ४
डर मत काली रात से, कहने लगा प्रभात।
जीवन की फिर से करो, एक नई शुरुआत।। ५
????—लक्ष्मी सिंह ?☺