दोहे मन को भाए
जीवन में करना नहीं, मन को कभी निराश।
कर्म करो तुम फिर खुले,सभी कष्ट के पाश।। 1
आते रहते हैं यहाँ, सुख व दुःख के चक्र।
होते जो विचलित नहीं, उस पर करते फ़क्र।। 2
जीवन सीधा हैं नहीं, जितना समझे आप।
पग पग पर गड्डे खुदे, फिर भी लेंगे नाप।। 3
मन को रखकर शांत तुम, करना सदा विचार।
हर उलझन फिर सुलझती, सुखद लगे संसार।। 4
मन को ख़ुश रखना सदा, जीने का यह मंत्र।
हो जाता हैं सब सरल, जैसे कोई यंत्र।। 5