दोहे/ नैन हुए नमकीन.
मृगनयनी शरमा गई, छवि अपनी ही देख |
अपलक रही निहारती, पैर ठुकी ज्यों मेख ||
अधर प्रेम रस के कुएँ, नैना शीतल धाम |
हँसी उत्स उत्साह का, क्या देगा परिणाम ||
कमल पंखुड़ी से नयन, विकल हो रहे आज |
मेह न थम जाए कहीं , आ जाओ सरताज ||
बादाखाना था खुला , कैसे आता चैन |
जागी सजनी रातभर, खोल नशीले नैन ||
जल चंचल बहने लगा, रही तड़पती मीन |
होंठ रहे खामोश पर , नैन हुए नमकीन ||
~ अशोक कुमार रक्ताले.