दोहे…नीति पर
प्रीत रीत सबसे सुघर,तोडो़ मत विश्वास।
बिना प्रेम मानव रहे,जीवन जन्म निराश।।
नीतिपरक दोहे कहूं,सुन लो धर कर ध्यान।
प्रेम सहित विष पानकर,मीरा बनी महान।।
रावण ज्ञानी था बडा़ ,बतलाते सब लोग।
अहंकार तज नहिं सका,बहुत बडा़ ये रोग।।
त्याग कर्म को सीख लो,रखो प्रभु पर आस।
ऐ नर जीवन में कभी,होगा नहीं निराश।।
सखा नीति की बात सुन,भूखे को दो दान।
हेय दृष्टि का त्याग कर,समझ सदा भगवान।।
तृष्णा धन की है बुरी,करना नहीं अधर्म।
अंत समय पछतायगा,करता रहा कुकर्म।।