दोहे तरुण के।
दोहे तरुण के।
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गंगा में डुबकी लगा, लौट गया ईमान।
कहलाते थे चोर जो,आज बनें श्री मान।।
देख ठाठ उनका हुआ,मेरा मन वाचाल।
मेरी भोले नाथ जी, जल्द गलाओ दाल।।
भांग धतूरा दूं चढ़ा, पर दो यह वरदान।
झूठ सदा सच ही लगे,सब दें मुझ पर जान।।
पंकज शर्मा “तरुण.”