दोहे आज के
नारी यदि करती सदा ,नारी का सम्मान।
क्या मजाल फिर पुरुष की ,कर सकता अपमान।01
साहूकार की हवस का ,बेला हुई शिकार।
बाप शराबी घर पड़ा, मां रोगी बीमार।।02
बंद घरों से हो गए ,भारत के हालात।
हर कोने जाले लगे , धुप्प अंधेरी रात।।03
झुलसाती है थकन दे , आग उगलती धूप।
मेहनतकश मजदूर का ,चेहरा हुआ कुरूप।।04
भले सियासत दे भुला , मजदूरों की बात।
पर अपने शुचि स्वेद से , सींचे भू दिन रात।।05
उजियारा तम बांटता , अरु पतझड़ मधुमास।
पाण्डे अब कैसे करें , अपनों पर विश्वास।।06
[कस्तूरी मृग की तरह ,दौड़ रहा दिन रात
।इतनी भी फुरसत नहीं ,कर ले खुससे बात।07
जोर,जुल्म ,अन्याय का ,आज चतुर्दिक राज।
फिर भी हम सब कह रहे , कितना सभ्य समाज।।08
ढोंगी ,पाखंडी चढ़े,व्यास पीठ पर आज ।
संरक्षण भरपूर फिर ,देता सभ्य समाज।।09
सबके चेहरे दिख रहा ,अनुत्तरित तनाव ।
भौतिकता की लपट से , अब तो झुलसे गांव।।10
मिट्टी में इस देश की ,है अद्भुत संदेश।
होता एक शहीद है , रोता पूरा देश।।11
आंगन आंगन उठ रहीं, अब असंख्य दीवार।
रिश्ते अब रिसते नहीं ,भला करे करतार।।12