दोहा-
राम रहीम सभी एक, मत भरमो जन कोय!
जा मे ही मन तव रमत, ता ही समझ सुभान!! १!!
मन चंचल का है गेह, थिर न कभी हो पाय!
जा तद थिर ही कर चलत,सो पावत जग सार!! २!!
राम रहीम सभी एक, मत भरमो जन कोय!
जा मे ही मन तव रमत, ता ही समझ सुभान!! १!!
मन चंचल का है गेह, थिर न कभी हो पाय!
जा तद थिर ही कर चलत,सो पावत जग सार!! २!!