दोहा
अंधे होकर स्वार्थ में, करते हैं जो काम।
हो जाते हैं एक दिन, दुनिया में बदनाम।।
सुबह-शाम आठो पहर, जो लेता हरिनाम।
जीवन भर रुकता नहीं, उसका कोई काम।।
शिक्षा सम भाई नहीं, शिक्षा सम कब यार।
जीवन भर दे साथ जो, शिक्षा वह उपहार।।
जीवन में कुछ भी करो, रखना इतना ख्याल।
भाई का हक मारकर, हुआ कौन खुशहाल।।
शिक्षा हो सबको सुलभ, दीन-हीन धनवान।
भारत का हर आदमी, बने सफल इंसान।।
शिक्षा सबको हीं मिले, समुचित और निशुल्क।
तभी तरक्की कर सके, भारत अपना मुल्क।।
राधे-राधे बोलकर, सुरू करे जो काम।
कृपादृष्टि भगवान की, उसपर आठो याम।।
राधे-राधे बोलिए, सुबह-शाम दिन-रात।
जीवन संकट हीन हो, बन जाएगी बात।।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य