दोहा
————————-प्रेम —————————
है जिस सुख को ढूँढता , दौलत में संसार |
वह तो केवल बाँटने , में मिलता है प्यार ||
सच्चा सुख है प्यार में , यही मंत्र है मूल |
जो इसके विपरीत हैं , वे करते हैं भूल ||
पति पत्नी के बीच में , नहीं प्रेम की साख |
तो घर में धन लाख हों, समझो उसको राख ||
कलह ,घृणा यदि है भरा , प्रेम हीन हैं लोग |
उस घर में धन हो भले , नहीं घटेगा रोग ||
धन है घर में या नहीं ,है परिजन में प्यार |
सुखी वही परिवार है , दुखी शेष संसार ||
है प्रेमी की ज़िंदगी , सुखमय जाती बीत |
लोभी गाते हैं वहीं , मात्र व्यथा के गीत ||
अवधू कहता है सदा , मन की बात पुकार |
सच्चा सुख है प्यार में , समझे यह संसार ||
करती असली प्यार है , नीज बछड़े से गाय |
बन में चरते हुटुकती , कब देखूँगी जाय ||
सबके भीतर द्वेश है , सबके भीतर प्यार |
जिसको जिसकी चाह है , वह ले उसे उभार ||
शीतलता है हृदय में , जब रहता है प्यार |
है घुसते ही द्वेश के , उर होता अंगार ||
प्रेमी तो है प्यार में , वैसे भाव विभोर |
जैसे हिमकर के लिए , है हो गया चकोर ||
दुनिया के बाजार में , प्रेम वस्तु है सार |
शेष भुलावा मात्र है , भूल न जाना यार ||
घृणा मूल है पतन का , भरे ह्रदय में शूल |
जिसके उर में प्यार है , जीवन उसका फूल ||
थोड़े दिन चलना हमें , है इस जग के संग |
जियें ज़िंदगी प्यार की , आ जाए कुछ रंग ||
जैसे उगते सूर्य के , बीछ जाती है कान्ति |
वैसे अपना प्रेम है , फैलाता है शांति ||
रखो वृक्ष की डालियों , आपस में अनुराग |
वन में तेरी रगड़ से , लग जाती है आग ||
अवध किशोर ‘अवधू’
ग्राम- बरवाँ (रकबा राजा)
पोस्ट—–लक्ष्मीपुर बाबू
जिला—-कुशीनगर (उत्तर प्रदेश )
मो.न.9918854285