दोहा
नेकी कर जग में सदा, अरु दरिया में डाल।
प्रभु किरपा से होइगा, जीवन यह खुशहाल।।
कहते हैं जो कर भला, मिले भला परिणाम।
सबका ही प्यारा बने, होइ जगत में नाम।।
आँखों में ज्वालामुखी,होंठों पर विषधार।
व्याघ्रों से बढ़कर हुआ,आज मनुज खूँखार।।
बिना तुम्हारे युग-सदृश,लगता एक निमेष।
प्रिय!एकाकी किस तरह,उम्र गुजारे शेष।।
पत्रहीन पीपल हुए ,खंखड़ हुए बबूल।
राही को छाया हुई,ज्यों गूलर का फूल।।
ढोल बजाकर जो सदा,बरसाते हैं ज्ञान।
अपने मन में भी कभी,झाँके वे श्री मान।।
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश