Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jul 2024 · 11 min read

दोहा

दोहा -कहें सुधीर कविराय ८
*****
परिणाम
*******
जिसका जैसा कर्म हैं, उसका तस परिणाम।
वाणी औ व्यवहार से, बने बिगड़ता काम ।।

बुरे कर्म का जानिए, सुखद कहाँ परिणाम।
पाप कर्म जो कर रहा, नहीं राम का काम।।

हम सबको इतना पता, कर्म नहीं अधिकार।
नहीं पता परिणाम का, मिले कर्म आधार।।

कल चुनाव का आ गया, सुखद दुखद परिणाम।
जनता ने तो कर दिया, वोट राष्ट्र के नाम।।

जिसने जैसा था किया, वैसा ही परिणाम।
रोकर क्या होगा भला, किया नहीं जब काम।।

नीति नियति से ही करो, तुम सब अपने काम।
छल प्रपंच से कब मिला, आखिर में परिणाम।।

सतपथ पर जब हम सभी, रहें देश के लोग।
विकसित भारत देश हो, राष्ट्र प्रेम हो रोग।।
*****
जीवन
*****
जीवन है बस चार दिन, इसे लीजिए जान।
करिए परहित काम बस, छोड़ लोभ अभिमान।।

स्वार्थ रहित जीवन जियो, मन में रख वैराग्य।
नाम प्रभु का लीजिए, और नहीं कुछ त्याग।।

लोभ-मोह से हम सभी, होंगे जितना दूर।।
जीवन उतना सरल हो, मिले खुशी भरपूर।।

जीवन में अपने सभी, सद्गुण लें हम धार।
जन मन पर उपकार हो, करें मधुर व्यवहार।।

बार बार मिलता नहीं, ये जीवन अनमोल।
जीवन जीने को मिला, रहे जहर क्यों घोल।।

प्रतिदिन पूजा प्रार्थना, करते रहिए आप।
दिल अपना करिए बड़ा, कुंठा है अभिशाप।।

आत्म ज्ञान करते रहें, हर पल हर दिन आप।
सत पथ पर चलते हुए, करते रहिए जाप ।।

एक एक दिन जा रहा, रहे आप क्यों भूल।
अब भी नहीं सचेत जो, उसे चुभेगा शूल।।

वक्त वक्त की बात है, आज मेरा ये हाल।
जीवन ऐसे बीतता, होता क्या बेहाल।।

जीवन में होता नहीं, मन के सारे काम।
जीवन फिर भी चल रहा, बिना किए विश्राम।।

जिसने जीवन में किया, सारे अच्छे काम।
बदनामों की लिस्ट में, सबसे ऊपर नाम।।

जीवन से मत हारिए, होगा कब कल्याण।
हो जायेगा क्या भला, सहज, सरल, समाधान।।
********
कलयुग
*******
आज शीर्ष पर छा गया, कलयुग घोर प्रभाव।
रिश्तों में भी दिख रहा, अब दूषित सदभाव।।

अब मौका दस्तूर भी, हुआ मतलबी प्यार।
जीवन के हर क्षेत्र में, छलता सद् व्यवहार।।
*****
व्हाट्स ग्रुप
********
ग्रुप ग्रुप का अब हो रहा, व्हाट्सएप पर खेल।
नहीं सोच पर है रहा, आपस ‌में ही मेल।।

मोबाइल अब कह रहा, माफ कीजिए मित्र।
भार नहीं अब डालिए, नहीं बिगाड़ो चित्र।।

ग्रुप पर ग्रुप हैं बन रहे, बनते रहते भार।
पूछें बिन ही जोड़ते, फिर करते हैं रार।।
*****
पिता
*****
पिता हमारे प्राण हैं, पितृ ही हैं आधार।
पिता बिना मिलता कहाँ, इस जीवन का सार।।

जिनको मिलता है नहीं, कभी पिता का प्यार।
उनको लगता है सदा, सूना है संसार।।

समझ नहीं आये पिता, थे मेरे जब साथ।
आज पिता जब हैं नहीं, लगता खाली हाथ।।

घर की हर इक ईंट में, मिला पिता का खून।
आज पिता की याद में, हर कोना है सून ।।

नहीं पिता का कीजिए, आप कभी अपमान।
वरना पाओगे नहीं, दुनिया में सम्मान।।

करते हैं जो भी पिता, वो है उनका प्यार।
इतना यदि तुमको पता, तब होगा उद्धार।।

क्रोध पिता जब भी करे, रहें आप तब मौन।
शुभचिंतक इनसे बड़ा, दिखे आपको कौन।।

पिता आपके प्यार का, मुझ पर इतना कर्ज ।
हर पल सेवा आपकी, केवल मेरा फर्ज ।।

पिता का अपने न कभी, करना मत अपमान।
इतने भर से आपका, निश्चित हो कल्यान।।

पिता स्वयं आकाश है, जिसकी शीतल छांव।
संतानों का वृक्ष वो, बने सुरक्षित ठांव।।

जिसने अपने तात का, किया नहीं सम्मान।
ईश्वर भी रखता नहीं, औलादों का ध्यान।।

मातु पिता का हो रहा, पल पल ही अपमान।
जैसे वो निष्प्राण हो, पत्थर सदृश समान।।

अपने पितु का भूल कर, करिए मत अपमान।
सेवा में नित रत रहो, अपना सीना तान।।

जीवित जब तक है पिता, पाता है सम्मान।
साथ नहीं जब आज वो, खूब होत गुणगान।।

पिता सिर्फ होता पिता, नहीं अमीर गरीब।
संग पिता का है जिसे, उसका बड़ा नसीब।।
*****
विविध
******
लगा मुखौटा आजकल, घूम रहे हैं लोग।
सावधान रहिए सदा, रहे दूर दुर्योग।।

योग दिवस पर जो किया, नहीं रहा अब याद।
मरना सबको है यहाँ, क्यों करना फरियाद।।

धोखा देना सीख कर, सिद्ध करो निज काम।
इतना भी आया नहीं, वो होगा नाकाम।।

गिरगिट भी है खौफ में, रंग बदलते लोग।
अब उसके अस्तित्व पर, मिटने का दुर्योग।।

आदर्शों का पीटते, करें बड़ा जो मान।
गिरवी रख जिसने दिया, दीन धर्म ईमान।।

माँ भगिनी अर्धांगिनी, बेटी सभी महान।
बड़ी जरूरत आज है, बस इनका हो मान।।

विनय हमारी आपसे प्रभो करो स्वीकार।
क्षमा आप कर दीजिए, आ पहुँचे जो द्वार।।

जीवन का ये सत्य है, मिले मुक्ति का धाम।
राम नाम सबसे बड़ा, जपो राम का नाम।।

जीवन को मत मानिए, तुम अपनी जागीर।
वरना पाओगे सदा, हर पल हर दिन पीर।।

विचलित मत होना कभी, कैसे भी हालात।
समय विकट है आज का, कल पावन सौगात।।

नज़रें अब तक ढूँढती, वारिश बूँदें चार।
और नहीं कुछ हाथ में, हैं इतना लाचार।।

शुचिता का घुटता गला, सरेआम हर रोज।
जिंदा रहने के लिए, राह रही है खोज।।

मुख से निकले शब्द हैं, चुभते जैसे तीर।
घायल करके वे बड़े, देते पीर अधीर।।

पीर पराई जानिए, मन में रख सद्भाव।
जन मन के कल्याण का, रखो जगाए भाव।।

हम सब नारी का करें, रोज मान सम्मान।
अपमानित पहले करें, पीछे से गुणगान।।

तेरे केवल बोल दो, देते शीतल छाँव।
इसीलिए तो शीश ये, झुकता तेरे पाँव।।

ईश्वर ने जब से दिया, अणिमा का वरदान।
तबसे लगने है लगा, पूरे सब अरमान।।

नहीं किया मैंने कभी, उसका तो अपमान।
फिर भी वो समझे नहीं, जीवन का विज्ञान।।

अपने बड़ों से लीजिए, नित्य आप आशीष।
शीश झुकाकर पाइए, खुशियों की बख्शीश।।

खुद पर जब विश्वास हो, बनते सारे काम।
शंका जिसको स्वयं हो, वो होता नाकाम।।

हमने उस पर क्यों किया, आँख मूँद विश्वास।
गला काट उसने किया, बंद हमारी श्वास।।

लोभ मोह से मुक्त हो, समझो जीवन ज्ञान।
नहीं कर्म पथ छोड़िए, मत करना अभिमान।।

आँसू जो है पोंछता, उसे न जाओ भूल।
ऐसा जिसने भी किया, चुभता उसको शूल।।

शीष झुकाता था कभी, उसे हुआ अभिमान।
आज उसे मिलता नहीं, कल जैसा सम्मान।।

चिंता चिता समान है, आप रहे क्यों भूल।
जीवन में इससे बड़ा, नहीं दूसरा शूल।।

छल प्रपंच से आपका, बढ़ता कब है मान।
मानव का सबसे बड़ा, मानवता पहचान।।

रक्तदान करना बड़ा, नहीं दंभ अभिमान।।
मिल जाता इस दान से, मुफ्त किसी को प्रान।।

मान और सम्मान पा, होना नहीं अधीर।
जीवन में रहिए सदा, बने आप गंभीर।।

जाने कितने दंभ में, चूर दीखते लोग।
छीन झपट जो का रहे, करते जैसे योग।।

पुरखों का सम्मान भी, बेंच रहे हैं लोग।
बड़े शान से वो कहें, अहो भाग्य संयोग।।

अपनी अपनी ही कहें, नहीं और का ध्यान।
ऐसे में किसका भला, और बढ़ेगा ज्ञान।।

दोषारोपण छोड़िए, करिए ऐसा काम।
जनता है हलकान जो, वो पाये आराम।।

दीन धर्म जिनका नहीं, जो करते हैं चोट
कफ़न बेंचते थे दिखे, आज मांगते वोट।।

रोज नये अवतार में, आ जाते हैं ग्रूप।
जब पूछो उद्देश्य क्या, रह जाते हैं चूप।।
******
धार्मिक/आध्यात्मिक
******
मंदिर जब जाएँ कभी, दंभ दिखावा छोड़।
श्रद्धा और विश्वास को, संग सिया में जोड़।।
या
(श्रद्धा और विश्वास को,हृदय लीजिए जोड़।।)

शुद्ध भाव के संग ही, मंदिर जायें आप।
मन में श्रद्धाभाव हो, संग ध्यान प्रभु जापll

मातु पिता और ईश को, नमन प्रात के साथ।
आशीषों के संग में, सिर पर उनका हाथ।।

पूजन प्रथम गणेश का, शुरू करें शुभ काम।
देव और फिर पूजिए, सुखद मिले परिणाम।।

लिखन-पुस्तिका लेखनी, मसि-पात्र का प्रयोग।
चित्रगुप्त जी की कृपा, है अद्भुत संयोग।।

गणपति की कर वंदना, करें शुरू जो काम।
काम सभी तब पूर्ण हो, मन जिसका निष्काम।।

जग पालनकर्ता सुनो, मेरी यही पुकार।
त्राहि त्राहि प्राणी करें, लीजै आप उबार।।

चित्रगुप्त आराध्य हैं, जो हैं उनके भक्त।
जाति धर्म बांटे बिना, रहता है आसक्त।।

भक्ति भाव से आपका, होगा तब उद्धार।
कर्म सदा सच्चा रहे, और प्रेम व्यवहार।।

फैल रहा संसार में, भ्रष्टाचारी रोग।
न्याय देव कुछ कीजिए, मिट जाये दुर्योग।।

प्रभु की इतनी है कृपा , रखते इतना ध्यान।
सुमिरन जो करता रहे, राम नाम भगवान।।

सुबह शाम नित कीजिए, ईश्वर जी का ध्यान।
हर पल ऊर्जा पाइए , मिले मधुर मुस्कान।।

पूजा प्रभु की कीजिए, अपने मन पट खोल।
राम भरोसे ही रहो, कटु वाणी मत बोल ।।

मंजिल अपनी राम हैं, राम ही जीवन सार।
राम नाम ही सत्य है, करना है बिस्तार।।

यहाँ वहाँ खोजूँ प्रभू, कहाँ छिपे हो आप।
पापी मूरख मैं बड़ा, दे मत देना शाप।।

दाता सबके राम हैं, राम सभी के साथ।
जिसके जैसे कर्म हैं, मिले कर्मफल हाथ।।

गौरी नंदन कीजिए, सबका बेड़ा पार।
चाहे जितना हो अधम, उसका भी उद्धार।।

ईश्वर ने जो भी दिया, माटी तन उपहार।
शीष झुका कर कीजिए,आप उसे स्वीकार।।

विनय हमारी आपसे प्रभो करो स्वीकार।
क्षमा आप कर दीजिए, आ पहुँचे जो द्वार।।

जीवन का ये सत्य है, मिले मुक्ति का धाम।
राम नाम सबसे बड़ा, जपो राम का नाम।।

*****
लकड़ी, तगड़ी
******
लकड़ी में ही जल गया, उनका जीवन सार।
जो कल तक कहते रहे, हमसे ही संसार।।

झटका जब तगड़ा लगा, तभी हुआ है ज्ञान।
आता था जिनको नहीं, ईश्वर का विज्ञान।।

गीली लकड़ी सी हुई, रिश्तों की अब डोर।
शाम तलक जो साथ थे, खिसक गए वो भोर।।

चोट बड़ी तगड़ी लगी, किया जब उसने चोट।
रिश्ते नाते भूलकर, मन में रखकर खोट।।

अच्छे कामों में सदा, बाधा बनते लोग।
लकड़ी लगाकर बोलते, ये तो है संयोग।।

अपनों से ही लग रही, पहले तगड़ी चोट।
फिर वे मरहम से घिसें, जिनके मन में खोट।।
*******
शपथ, ग्रहण
*******
शपथ ग्रहण से हो रहे, कुछ दल हैं बेचैन।
नहीं सोच वे पा रहे, झपकाएँ बस नैन।।

शपथ ग्रहण के ख्वाब की, बिखर गई उम्मीद।
पांच साल तक अब भला, कब आयेगी नींद।।

उनके सपनों पर पड़ा, धूमिल ग्रहण प्रभाव।
शपथ ग्रहण की खबर ही, लगती जैसे घाव।।

कल की चिंता में हुए, आज सभी बेचैन।
शपथ ग्रहण क्या क्या करें, सोच रहे हैं नैन।।
******
सबक
*******
जीवन से कुछ सीखिए, नव जीवन का सार।
मानव जीवन के लिए, कैसा हो व्यवहार।।

छोटे हों या फिर बड़े, सबक सिखाते रोज।
स्वयं काम को सीखिए, सबक आप लो खोज।।

सबक नहीं जो सीखता, गलती बारंबार।
निश्चित ही हम मानते, उसे न खुद से प्यार।।

गलती पर गलती करे, और दंभ में चूर।
सबक नहीं वो ले रहा, आदत से मजबूर।।

बहुत सरल है सीखना, मन से जो तैयार।
सबक नहीं छोटा बड़ा, सबका है अधिकार।।

सबक नहीं हम सीखते, करें भूल सौ बार।
मान लीजिए आप ये, खुद पर अत्याचार।।
*******
गर्मी/ताप/जल/पर्यावरण
*****
हर प्राणी बेचैन है, धरती भई अधीर।
इंद्रदेव कर दो कृपा, बरसा दो अब नीर।।

अंगारों की हो रही, धरती पर बरसात।
इंद्रदेव की हो कृपा, तभी बनेगी बात।।

हीट बेव से बढ़ रही, नयी समस्या नित्य।
अग्नि कांड है जो बढ़ा, और नहीं औचित्य।।

पशु-पक्षी बेचैन हैं, बढ़े सूर्य का ताप।
धरा दंश है झेलती, मानव करता पाप।।

जल ही जीवन जानिए, सुंदर है प्रतिमान।
जल बिन जीवन है कहां, नहीं आप को ज्ञान।।

नीर लगे सबसे बड़ी, दिखे जरूरत आज।
लगे नहीं इससे बड़ा, दूजा कोई काज।

जल संकट का हो रहा, रोज रोज विस्तार।
जगह जगह दिखता हमें, बढ़ता इस पर रार।।

पोषक सृष्टि की बने, बूंद बूंद जलधार।
तन मन पोषित हो रहा, अपना जीवन सार।।

जल से बनती है धरा, हरी भरी खुशहाल।
बड़ी जरूरत आज है, रखिए इसका ख्याल।।

धरती से यदि मिट गया, कल जल का अस्तित्व।
बिन जल क्या होगा भला, जीवन रूपी तत्व।।

बिन जल कल होगा नहीं, आप लीजिए जान।
संरक्षण मिल सब करो, यही आज का ज्ञान।।

धरती माँ बेचैन हैं, व्याकुल हैं सब जीव।
प्रभु बस इतना कीजिए, बचा लो इनकी नींव।।

अपने बच्चों के लिए, वृक्ष लगाओ आप।
आज आपके कर्म ही, बने नहीं अभिशाप।।

आज प्रकृति के चक्र का, बिगड़ गया अनुपात।
जब से हम करने लगे, प्रकृति संग उत्पात।।

तपती धरती के लिए, हम सब जिम्मेदार।
कैसे कहते आप हैं , उचित यही व्यवहार।।
******
योग
*****
योग दिवस पर कीजिए, आप सभी मिल योग।
नित्य इसे करना सभी, मिट जायेगा रोग।।

योग संग सब कीजिए, आज ईश का ध्यान।
वैसे भी रहना हमें, कल से अंतर्ध्यान।।
*****
मां गंगा
******
मां गंगा खामोश है, करती ना प्रतिकार।
मिटा रहे हम आप ही, सुनते कहाँ पुकार।।

आज मौन खामोश हो , कहता सच्ची बात।
घायल तुमको है किया, अपनों का प्रतिघात।।
*****
आदर्शों का पीटते, करें बड़ा जो मान।
गिरवी रख जिसने दिया, दीन धर्म ईमान।।
*****
धन्यवाद
*****
धन्यवाद कैसे करूँ, पाकर इतना प्यार।
मुझको तो ऐसा लगे, मिला ईश उपहार।।

धन्यवाद मत कीजिये, किया नहीं उपकार।
इतने भर से आपने, दिया मुझे संसार।।

****
विकट
****
विचलित मत होना कभी, कैसे भी हालात।
समय विकट है आज का, कल पावन सौगात।।

विकट समस्या है खड़ी, मंत्री बड़ी अधीर।
नहीं समझ वे पा रहीं, कैसे मिटेगी पीर।।

विकट समस्या है बनी, बढ़ता धरती ताप।
कौन बताएगा मुझे, ये किसका है पाप।।
*****
लालची
*******
चहुँ दिश दिखते आज हैं , बड़े लालची लोग।
बेइमानी की छांव में, करते हैं सुख भोग।।

राजनीति में बढ़ रहे, आज लालची लोग।
चमक दमक की चाहना, और मुफ्त का भोग।।

बेशर्मी से खेलते, आज लालची लोग।
बेइमानी से जीतते, और कहें संयोग।।

हमने जितना ही दिया, उसे मान सम्मान।
वापस उसने भी किया, संग जोड़ अपमान।।
******
आचरण
*******
आज मनुज का आचरण, हुआ समझ से दूर।
मुख पर भोलापन दिखे, भीतर से हैं क्रूर।।

लगा मुखौटा आजकल, घूम रहे हैं लोग।
सावधान रहिए सदा, रहे दूर दुर्योग।।

योग दिवस पर जो किया, नहीं रहा अब याद।
मरना सबको है यहाँ, क्यों करना फरियाद।।

धोखा देना सीख कर, सिद्ध करो निज काम।
इतना भी आया नहीं, वो होगा नाकाम।।

गिरगिट भी है खौफ में, रंग बदलते लोग।
अब उसके अस्तित्व पर, मिटने का दुर्योग।।

प्राँंजल दिन पर आपको, मेरी दुआ हजार।
संग सुगंधित नित रहे, बना रहे यह प्यार।।

मुझको अपने कर्म पर, है इतना अभिमान।
इसीलिए रहता सदा, हरदम सीना तान।।

पढ़ना उसको कठिन है, ऊहापोह में मित्र।
झुक जाता है शीश ये, जो बनता है चित्र।।

सुबह सुबह उसने दिया, खुशियों की सौगात।
मौसम शीतल हो गया, खूब हुई बरसात।।

जीवन में भगवान ने, दिया अतुल उपहार।
फिर भी कब हम मानते, उनका ये उपकार।।
****
शुक्र, शनि
******
शुक्र बड़ा है ईश का, सफल हुआ है काज।
झुकते झुकते शीश की, आज बच गई लाज।।

शुक्र शनी के फेर में, नहीं उलझिए आप।
सत पथ पर चलते रहें, नहीं लगेगा शाप।।

सदा सभी के राखिए, अपना सम व्यवहार।
शुक्र अदा उसका करें, जिसके मन में प्यार।।

जैसे जिसके कर्म हैं, उसको वैसा दंड।
नजर शनी रखते सदा, छिपे नहीं पाखंड।।

शनी कष्ट देते सदा, सत्य नहीं यह बात।
शनी देव की हो कृपा, मिल जाती सौगात।।
******
अकस्मात
*******
अकस्मात होता नहीं, इस दुनिया में काम।
जो समझे संकेत को, होता उनका नाम।।

अकस्मात ये क्या हुआ, हुए सभी बेचैन।
चहुँदिश दिखते लोग क्यों, भरे अश्रु से नैन।।

अकस्मात ये क्या हुआ,समझाओ तुम मित्र।
किसने ऐसा क्या किया, बिगड़ गया जो चित्र।।

*****
अकारण
*****
आज अकारण आप भी, पछताते हैं आप।
कारण जाने ही बिना, मान ले रहे पाप।।
******
झलक, छलक
********
खूब झलकता दंभ है, सबके मुख पर आज।
सबको लगता है बड़ा, यही सरल है काज।।

थोड़ा सा धन क्या मिला, खोया बुद्धि विवेक।
घूम घूम दिखला रहा, झलक रहा अविवेक।
*****
विश्वास
******
उन्हें नहीं विश्वास है, खुद पर ही जब आज।
नौटंकी ऐसे करें, जन्म सिद्ध हो राज।।

खुद पर जब विश्वास हो, तभी कीजिए काम।
वरना सोकर काटिए, अपना सुबहो शाम।।

रिश्तों में विश्वास का, नहीं रहा संबंध।
रिश्ते ऐसे हो रहे, जैसे हो अनुबंध।।

विश्वासों का हो रहा, आज हो रहा खून।
रिश्ते अब लगने लगे, जैसे टाटा नून।।

रिश्तों में दिखते कहाँ, पहले जैसा रंग।
प्रेम और विश्वास का, आपस में अब जंग।।

सबके मन में आ गया, लोभ मोह जब आज।
इसके बिन चलता नहीं, आज किसी का काज।।

राम नाम रटिए तभी, जब उन पर विश्वास।
वरना तुम रखना नहीं, तनिक राम से आस।।

प्रभू नाम विश्वास का, जन मन रखता आस।
भक्तों की हर सांस में, ईश नाम का वास।।
*********
संविधान
*******
संविधान की आड़ में, करें खूब हुड़दंग।
नेताजी के ढोंग से, मतदाता है दंग।।
*****
दाना, पानी
*********
दाना पानी के लिए, भटक रहे हैं लोग।
मजबूरी इसको कहें, या कोई संयोग।।

पानी से भी हो रहे, लोग बहुत बेहाल।
कभी होंठ सूखे रहे, कभी बाढ़ का जाल।।

दाने दाने के लिए, तरसा राम गरीब।
दाता दानी एक भी, फटका नहीं करीब।।

पीने को पानी नहीं, जनता है बेहाल।
बेढंगी सरकार की, कैसी है ये चाल।।

जिसके जितना भाग्य में, दाना पानी योग।
ईश्वर की होती कृपा , बन जाता संयोग।।
*******
टी-२० विश्व कप २९ जून’२०२४, बारबाडोस
********
विश्व विजेता फिर बने, गर्व हो रहा यार।
नाचें गाएं हम सभी, करें देश से प्यार।।

सत्रह वर्षों में मिला, रूठा था जो साज।
गर्वित भारतवर्ष है, मिला आज जब ताज।।

टीम इंडिया ने दिया, खुशियों की सौगात।
विश्व कपा हमको दिया, प्रोटियाज को मात।।

वादा था जय शाह का, रोहित हाथ कमान।
विश्व पटल पर देखिए, बढ़ा देश का मान।।

शनीदेव हनुमान जी, दोनों थे जब साथ।
विश्व कपा आया तभी, तब भारत के हाथ।।
******
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
55 Views

You may also like these posts

बेवजह  का  रोना  क्या  अच्छा  है
बेवजह का रोना क्या अच्छा है
Sonam Puneet Dubey
इसलिए लिख के
इसलिए लिख के
Dr fauzia Naseem shad
"संगीत"
Dr. Kishan tandon kranti
सुविचार
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
*pyramid*
*pyramid*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
वह सिर्फ तू है
वह सिर्फ तू है
gurudeenverma198
मालिक मेरे करना सहारा ।
मालिक मेरे करना सहारा ।
Buddha Prakash
*बताओं जरा (मुक्तक)*
*बताओं जरा (मुक्तक)*
Rituraj shivem verma
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
Sangeeta Beniwal
कुछ तो मजबूरी रही होगी...
कुछ तो मजबूरी रही होगी...
TAMANNA BILASPURI
अपनी बुरी आदतों पर विजय पाने की खुशी किसी युद्ध में विजय पान
अपनी बुरी आदतों पर विजय पाने की खुशी किसी युद्ध में विजय पान
Paras Nath Jha
प्रभु तुम ही याद हो
प्रभु तुम ही याद हो
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
अच्छे मित्र,अच्छे रिश्तेदार और
अच्छे मित्र,अच्छे रिश्तेदार और
Ranjeet kumar patre
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
ये हल्का-हल्का दर्द है
ये हल्का-हल्का दर्द है
डॉ. दीपक बवेजा
यादों के अभिलेख हैं , आँखों  के  दीवान ।
यादों के अभिलेख हैं , आँखों के दीवान ।
sushil sarna
शायरी
शायरी
Pushpraj devhare
जंग तो दिमाग से जीती जा सकती है......
जंग तो दिमाग से जीती जा सकती है......
shabina. Naaz
वक्त
वक्त
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आपके दिल में क्या है बता दीजिए...?
आपके दिल में क्या है बता दीजिए...?
पंकज परिंदा
मधुमास
मधुमास
Namita Gupta
संवेदना
संवेदना
Karuna Bhalla
सूरज बहुत चढ़ आया हैं।
सूरज बहुत चढ़ आया हैं।
Ashwini sharma
💐फागुन होली गीत💐
💐फागुन होली गीत💐
Khaimsingh Saini
अपनी ज़िक्र पर
अपनी ज़िक्र पर
Dilip Bhushan kurre
ठुकरा के तुझे
ठुकरा के तुझे
Chitra Bisht
4534.*पूर्णिका*
4534.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बेखबर
बेखबर
seema sharma
"राजनीति" विज्ञान नहीं, सिर्फ़ एक कला।।
*प्रणय*
"सुनो एक सैर पर चलते है"
Lohit Tamta
Loading...