दोहा
दोहा
वक्त बदला, हम बदले,बदल गया सब रीति-रिवाज.
हेलो हाय के सिक्कड़ जकड रहा यह सभ्य समाज..
खान-पान परिधान बदल गया , बदल लिया अपना संस्कार.
छोड़ संयुक्त-परिवार पद्धति, अपना रहे व्यक्तिगत-परिवार..
धन दौलत का मान बढ़ गया, ऐशो-आराम हुआ परम उदेश्य .
नैतिकता,सदाचार,सोहार्द-प्रेम का रहा न महिमा रहा न लक्ष्य..
विवाहोपरांत ससुराल प्रिय हो जाता, माता-पिता हो जाते गौण.
मौसा मौसी देते सलाह-मशविरा और चाचा-चाची रहते मौन..
सेकरेसी का आलम ऐसा है, परिवार-सदस्य सब रहता एक-साथ.
सब व्यस्त अपने मोबाईल पर, कोई किसी से न करता बात..
गुड-बतासा शीतल जल से शुरू होता था तब अतिथि सत्कार.
अब चाय नहीं तो स्वागत है फीका छप्पन व्यंजन होता बेकार..
एक टी.वी घर में होता था, सभी देखते थे बैठ एक साथ
आज मिला हर हाथ मोबाईल अपनी डफली अपना राग..
खत्म हुआ घर का आँगन वांगन, और दलान पर का नलकूप.
मल्टी फ्लोर बिल्डिंग कल्चर में मिलती हवा न मिलता धूप ..